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Judge Vs Magistrate : जज और मजिस्ट्रेट में क्या होता है अंतर, जानिए दोनों में से किसके पास होती है ज्यादा पॉवर

देश में कानून व्यवस्था संभालने वाले जज और मजिस्ट्रेट दोनों के बारे में आपने सुना होगा क्या आपने गौर किया है. कि जज और मजिस्ट्रेट के पद में क्या अंतर होता है. और किसके पास सबसे ज्यादा पावर होते चलिए जानते हैं इस खबर के माध्यम से...
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जज और मजिस्ट्रेट में क्या होता है अंतर, जानिए दोनों में से किसके पास होती है ज्यादा पॉवर

Agro Haryana, New Delhi : आप में से लगभग हर कोई जज और मजिस्ट्रेट इन दोनों पदनामों के बारे में सुना होगा. जब कभी किसी पर कोई मामला बनता है या कोई किसी से झगड़ता है, तो आपने यह कहते हुए सुना होगा कि इसका मतलब ये हुआ कि मैं तुम्हें कोर्ट में देख लूंगा.

इन दोनों पदनामों में लोगों को अक्सर कंफ्यूजन होता है कि क्या ये दोनों एक ही हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. दोनों में काफी अंतर माना जाता है.

जज (Judge) और मजिस्ट्रेट (Magistrate) के काम करने से लेकर इनकी नियुक्ति प्रक्रिया में भी काफी फर्क देखा जा सकता है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

जज और मजिस्ट्रेट दोनों ही इंडियन ज्यूडिशियल सिस्टम का एक हिस्सा हैं. जज और मजिस्ट्रेट के बीच अंतर की बात करें, तो जज की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है,

जबकि इससे पहले इनकी नियुक्ति हाई कोर्ट द्वारा की जाती थी. जज (Judge) और मजिस्ट्रेट  (Magistrate) के बीच एक और अंतर यह है कि वे न्यायपालिका में विभिन्न लेवलों पर कार्य करते हैं.

दोनों की न्यायपालिका में उपस्थिति होती है, लेकिन इनकी भूमिकाएं एक-दूसरे से भिन्न होती हैं. जब किसी आदेश को अंतिम रूप देने की बात आती है.

तो जज के पास मजिस्ट्रेटों की तुलना में अधिक शक्ति होती है. भारतीय न्यायिक व्यवस्था में मजिस्ट्रेट जजों से निचले लेवल पर कार्य करते हैं. हालांकि, जजों और मजिस्ट्रेटों के बीच कुछ समानताएं भी हैं.

कौन होता है जज?

“जज” शब्द एंग्लो-फ़्रेंच शब्द “जुगर” से आया है, जिसका अर्थ है किसी चीज़ पर एक राय बनाना. जज एक न्यायिक अधिकारी होता है, जो अदालती सुनवाई का संचालन करता है और लीगल मामलों पर अंतिम फैसला देता है.

वे मजिस्ट्रेट से श्रेष्ठ माने जाते हैं और भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. जज कानूनी सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय में बैठता है. एक जज किसी अदालती मामले में अकेले अंतिम फैसला दे सकता है या न्यायाधीशों के पैनल से मदद ले सकता है.

एक जज के पास किसी को मौत की सज़ा देने का अधिकार है. न्यायपालिका प्रणाली पूरे देश में कानून लागू करने और नागरिकों, राज्यों और अन्य पक्षों के बीच विवादों को निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

मजिस्ट्रेट होता है कौन?

“मजिस्ट्रेट” शब्द एक फ्रांसीसी शब्द से आया है, जिसका अर्थ है एक सिविल ऑफिसर है. मजिस्ट्रेट का पद वर्ष 1772 में भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स द्वारा पेश किया गया था.

भारतीय न्यायिक प्रणाली में मजिस्ट्रेट एक छोटा न्यायिक प्रणाली अधिकारी होता है, जो किसी विशेष क्षेत्र, कस्बे या जिले में कानून का संचालन करता है. वे एक ही दिन में कई मामलों पर फैसला सुनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं.

जब कोई व्यक्ति दोषी मानता है तो मजिस्ट्रेट दंड तय करते हैं. यदि वे निर्णय को चुनौती देते हैं, तो वे तय करते हैं कि व्यक्ति दोषी है या नहीं. एक मजिस्ट्रेट के पास जज के समान अधिकार नहीं होते हैं.

केवल राज्य सरकार और हाई कोर्ट ही मजिस्ट्रेट की नियुक्ति कर सकते हैं. मजिस्ट्रेट चार प्रमुख प्रकार मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, न्यायिक मजिस्ट्रेट, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट होते हैं.

जज और मजिस्ट्रेट में क्या है अंतर 

भारतीय न्यायपालिका में मजिस्ट्रेट और जज विभिन्न लेवलों पर कार्य करते हैं. जज अधिकार में बड़े होते हैं और उनका निर्णय ही अंतिम होता है. नीचे जज और मजिस्ट्रेट के बीच के अंतर को इस तरह समझ सकते हैं.

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